Wednesday, November 17, 2010

शब्द

एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।’’ साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो। किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने उससे कहा, ‘‘अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।’’ नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले, वह वापस साधु के पास आ गया। यह देख साधु ने उससे कहा, ‘‘ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है।"

Monday, January 4, 2010

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आँगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कंहा मिले
पर बोलो टूटे तारो पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी इसकी कितनी कलियां
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कन्हा खिली
पर बोलो सूखे फूलो पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते है
गिर मिटटी में मिल जाते है
जो गिरते है कब उठते है
पर बोलो टूटे प्यालो पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बीत गई
मृदु मिटटी के बने हुए है
मधु घाट फूटा ही करते है
लघु जीवन लेकर आये है
प्याले टूटा ही करते है
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घाट है मधु के प्याले है
जो मादकता के मारे है
वे मधु लूटा ही करते है
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालो पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गयी !!



— हरिवंशराय बच्चन