Monday, November 2, 2009

आशा

कोई दो सौ वर्ष पहले जापान में दो राज्यों में युद्घ छिड़ गया था | छोटा जो राज्य था भयभीत था , हार जाना उसका निश्चित था |उसके पास सैनिको की संख्या कम थी |थोडी कम नही थी बहुत कम थी |दुश्मन के पास दस सैनिक थे ते उसके पास एक सैनिक था |उस राज्य के सेनापतियों ने युद्घ पर जाने से इंकार करदिया |उन्होनो ने कहा की यह तो सीधी मुड़ता होगी , हम अपने आदमियों को व्यर्थ ही काटने को ले जाए |हार तो निश्चित है | जब सेनापतियों ने माना कर दिया युद्ध पर जाने से उन्होंने कहा की जब हार निश्चित है तो हम अपना मुह पराजय की कालिख से पोते जाने को तैयार नही , और अपने सैनिको को भी व्यर्थ कटवाने के लिए हमारी मनसा नही है , मरने की बजाय हर जाना उचित है |मर के भी हारना है , जीत की तो संभावना मानी नही जा सकती | सम्राट कुछ नही कर सकता था , बात सत्य थी आंकडे सही थे | तब उसने गाव में बसे एक फ़कीर के पास जाकर प्रार्थना की कि आप मेरी फौजों के सेनापति बनकर जासकते है ?यह बात उसके सेनापतियों को समझ में नही आई |सेनापति जब इंकार करते हो , तो एक फ़कीर को जिसे युद्ध का कोई अनुभव नही , जो कभी युद्ध पर गया नही , जिसने कभी कोई युद्ध किया नही ,जिसने कभी कोई युद्ध कि बात नही की|यह बिल्कुल अव्यवहारिक आदमी को आगे करके क्या प्रयोजन ? लेकिन वह फकीर राजी होगया |जंहा बहुतसे व्यावहारिक आदमी तैयार नही होते ,वंहा अव्यवहारिक आदमी तैयार होजाते है|जंहा समझदार पीछे हट जाते है वंहा जिन्हें कोई अनुभव नही वे आगे खड़े होजाते है |वह फ़कीर राजी होगया सम्राट भी द्र मन में , लेकिन फ़िर भी ठीक था |हारना भी था तो मरकर हारना ही ठीक था |फकीर के साथ सैनिको को जाने में बडी घबआहट हुई |यह आदमी कुछ नही जनता लेकिन फकीर इतने जोश से भरा था ,सैनिको को जाना पडा |सेना पति भी सैनिको के पीछे ही लिए की देंखे क्या होता है ? जंहा दुस्मन के पडाव थे उसके थोड़े ही दूर उस फकीर ने एक छोटे से मन्दिर में सरे सैनिको को रोका और उसने कहा की इसके पहले कि हम चले , कम से कम भगवान को कह दे कि हम लड़ने जारहे है और उनसे पूंछ भी ले कि उनकी मनसा क्या है ?अगर हारना ही हो तो हम वापिस ही लौट जाए और जीतना हो तो ठीक है| सैनिक बड़ी आशा से मन्दिर के बहार खड़े रहे |उस फकीर ने हट जोड़कर भगवन से प्रार्थना की,फ़िर खीसे से एक सिक्का निकाला और भगवन से कहा की मई इस रुपये को फेकता हु अगर यह सीधा गिरा तो हम समझ लेंगे की जीत हमारी होनी है ,हम आगे बढजायेंगे और अगर यह उल्टा गिरा तो हम मन लेंगे की हम हार गये , हम वापस लौट जायेंगे |राजा से कह देंगे हमारी हार निश्चित है भगवन की भी मनसा यही है |सैनिको ने गौर से देखा ,उसने रुपया फैका चमकती धुप में रुपया चमका और नीचे गिरा ,वह सीधा गिरा था | उसने सैनिको से खा ,अब फ़िक्र छोडो , अब ख्याल ही छोड़ दो की तुम हार सकते हो , अब इस जमीन पर तुम्हे कोई नही हरा सकता |रुपया सीधा गिरा था , भगवन साथ थे |वे सैनिक जाकर झूझगये |सात दिनों में उन्होंने दुसमन को परस्त करदिया | वे जीते हुए वापस लौटे |उस मन्दिर के पास फकीर ने कहा की अब धन्यवाद तो दे दे |वे सारे सैनिक रुके ,उन सबने हाथ जोडकर भगवन से प्रार्थना की और कहा तेरा बहुत धन्यवाद कि अगर तू हमे इशारा करता जीतने का तो हम तो हार ही चुके थे तेरी क्रपा और तेरे इशारे से हम जीते |उस सेनापति ने कहा ,इसके पहले भगवन को धन्यवाद दो मेरे खीसे में जो सिक्का पडा है उसे गौर से देखलो |उसने सिक्का निकाल कर दिखाया ,सिक्का दोनों तरफ़ से सीधा था उसमे उल्टा हिस्सा था ही नही |वह सिक्का बनावटी था वह दोनों तरफ़ सीधा था वह उल्टा गिर ही नही सकता था | उसने खा कि भगवन को धन्यवाद मत दो ,तुम जीत कि आशा से भर गये ,इसीलिये जीत गये |तुम हार भी सकते थी क्यो कि तुम निराश थे और हारने कि कामना से भरे थे |तुम जानते थे कि हारना ही है |जीवन में सरे कामो कि सफलताए इस बात पर निर्भर करती है कि हम उनी जीत कि आशा से भरे है या हार के ख्याल से डरे हुए है | और बहुत आशा से भरे हुए लोग थोडी सी सामर्थ्य से इतना करपाते है जितना कि बहुत सामर्थ्य के रहते हुए भी निराशा से भरे हुए लोग नही करपाते |