Wednesday, May 20, 2009

जड़ता...

आदते मनुष्य की चेतना को दबा देती है जिस मनुष्य को आत्मा को उपलब्ध होना हो उसकी उतनी ही कम आदते होनी चाहिए , उसके उतने ही कम बंधन होने चाहिए , उसकी उतनी ही कम जड़ता होनी चाहिए
संवेदना का क्या अर्थ है ,सेंसेटिव होने का क्या अर्थ है , उसका प्रयोजन यह है कि , जितनी कम जड़ता हो उतनी जादा मनुष्य आनंद भीतर संवेदना कि शक्ति जाग्रत होगी और जितनी जादा जड़ता हो उतनी संवेदना कि शक्ति शून्य हो जाती है , और संवेदना कि शक्ति जितनी गहरी हो हम सत्य को उतनी ही गहराईतक अनुभव करपयेंगे और संवेदना कि शक्ति जितनी कम हो जायेगी , उतना ही हम सत्य से दूर होजाएंगे जो धार्मिक है ,वह स्मरण रख्नेकि धर्म उनकी आदत न बन जाए कंही धर्म भी उनकी एक जड़ता न बन जाए कि वह सुबह रोज मन्दिर जाए ,नियत समय पर मन्दिर जाए ,एक नियत मंत्र पड़े ,एक नियत देवता आनंद आगे हट झुकाए ,यह कंही उनकी जड़ आदत न हो , और यह सच है कि सौ में से निन्यानवे मौके पर यह एक जड़ आदत है ,और यह आदती बेहतर नही और यह आदत ठीक नही फिर यह भी याद स्मरण रखे आपने दूसरो की आज्ञाओं स्वीकार करली है और आप उनके अनुसार वर्तन कर रहे है , उनके अनुकूल आचरण कर रहे है यह भी जड़ता को अंगीकार करलेना है जब भी कोई आज्ञा दे और आप स्वीकार कर ले तो आप कि चेतना भीतर छीड़ हो जाती है , जब भी कोई कुछ कहे और आप स्वीकार करलेते है ,आपके भीतर कि चेतना जड़ होने लगती है समाज कहता है ,संस्कार कहते है ,पुरोहित कहते है हजारो वर्षो कि उनकी परम्परा है,उसके बजन पर कहते है उछारण करते है शास्त्रों का कि यह ठीक है और हम उसे मन लेते है ,और उसे स्वीकार करलेते है धीरे-धीरे हम स्वीकार मात्र पर टिके रह जायेंगे ,और जो हमारा स्फुरण होना चाहिए था जीवन का ,वह बंद हो जाएगा जीवन आनंद स्फुरण आनंद लिए जरूरी है कि वह वक्ती आज्ञाओं आनंद पीछे नही बल्कि स्वयं आनंद विवेक आनंद पीछे चले जीवन स्फुरण लिए जरुरी है कि जो-जो चीजे जड़ करती हो ,वक्ती अपने को उनसे मुक्त करले