संवेदना का क्या अर्थ है ,सेंसेटिव होने का क्या अर्थ है , उसका प्रयोजन यह है कि , जितनी कम जड़ता हो उतनी जादा मनुष्य आनंद भीतर संवेदना कि शक्ति जाग्रत होगी और जितनी जादा जड़ता हो उतनी संवेदना कि शक्ति शून्य हो जाती है , और संवेदना कि शक्ति जितनी गहरी हो हम सत्य को उतनी ही गहराईतक अनुभव करपयेंगे और संवेदना कि शक्ति जितनी कम हो जायेगी , उतना ही हम सत्य से दूर होजाएंगे जो धार्मिक है ,वह स्मरण रख्नेकि धर्म उनकी आदत न बन जाए कंही धर्म भी उनकी एक जड़ता न बन जाए कि वह सुबह रोज मन्दिर जाए ,नियत समय पर मन्दिर जाए ,एक नियत मंत्र पड़े ,एक नियत देवता आनंद आगे हट झुकाए ,यह कंही उनकी जड़ आदत न हो , और यह सच है कि सौ में से निन्यानवे मौके पर यह एक जड़ आदत है ,और यह आदती बेहतर नही और यह आदत ठीक नही फिर यह भी याद स्मरण रखे आपने दूसरो की आज्ञाओं स्वीकार करली है और आप उनके अनुसार वर्तन कर रहे है , उनके अनुकूल आचरण कर रहे है यह भी जड़ता को अंगीकार करलेना है जब भी कोई आज्ञा दे और आप स्वीकार कर ले तो आप कि चेतना भीतर छीड़ हो जाती है , जब भी कोई कुछ कहे और आप स्वीकार करलेते है ,आपके भीतर कि चेतना जड़ होने लगती है समाज कहता है ,संस्कार कहते है ,पुरोहित कहते है हजारो वर्षो कि उनकी परम्परा है,उसके बजन पर कहते है उछारण करते है शास्त्रों का कि यह ठीक है और हम उसे मन लेते है ,और उसे स्वीकार करलेते है धीरे-धीरे हम स्वीकार मात्र पर टिके रह जायेंगे ,और जो हमारा स्फुरण होना चाहिए था जीवन का ,वह बंद हो जाएगा जीवन आनंद स्फुरण आनंद लिए जरूरी है कि वह वक्ती आज्ञाओं आनंद पीछे नही बल्कि स्वयं आनंद विवेक आनंद पीछे चले जीवन स्फुरण लिए जरुरी है कि जो-जो चीजे जड़ करती हो ,वक्ती अपने को उनसे मुक्त करले
Wednesday, May 20, 2009
जड़ता...
आदते मनुष्य की चेतना को दबा देती है जिस मनुष्य को आत्मा को उपलब्ध होना हो उसकी उतनी ही कम आदते होनी चाहिए , उसके उतने ही कम बंधन होने चाहिए , उसकी उतनी ही कम जड़ता होनी चाहिए
Saturday, May 16, 2009
अनुकरण नही आत्मखोज....
जब भी मनुष्य किसी दूसरे जैसे होने की कोशिश करता है तभी वह अन्तः द्वंद में , एक कांफिलिक्ट में ,एक परेशानी में पड़ जाता है जो वह है वो उसे तो भूल जाता है और जो होना चाहता है उस की कोशिश पैदा करलेता है इस भांति उसके भीतर एक बेचैन ,एक अशांति और एक संघर्ष पैदा हो जाता है
परमात्मा को केवल वे ही पा सकते है जो शांत होजो अशांत है वे कैसे पासकेंगेजो भी किसी की नक़ल में कुछ होना चाह रहा है ,वह अनिवार्यतयाअशांत हो जाएगा उसकी अशांति उसे परमात्मा आनंद पास नही पहुँचा सकेगी अगर जूही का फूल गुलाब होना चांहे , तो जैंसी बेचैनी और परेशानी में पड़ जायेंगे वैसी बेचैनी और परेशानी में हम पड़ जाते है , जब हम किसी का अनुकरण करते है इसलिए मैं कहना चाहता हु कि अनुकरण नही आत्मखोज मैंने फली बात आप से कही श्रधा नही, जिज्ञासा दूसरी बात कहना चाहता हूँ अनुकरण नही आत्न्खोज कोई किसी के लिए आदर्स नही है प्रत्येक व्यक्ति का आदर्स उसके अपने भीतर छिपा है ,जो उघाड़ना है , और उसे हम नही उघडते और किसी पीछे जाते है तो हम भूल में पड़ जायेंगे ,हम भटकन में पड़ जायेंगे और में आप से कंहू की आप लाख उपाय करे , आप कभी कृष्ण ,बुद्ध नही बन सकोगे -
परमात्मा को केवल वे ही पा सकते है जो शांत होजो अशांत है वे कैसे पासकेंगेजो भी किसी की नक़ल में कुछ होना चाह रहा है ,वह अनिवार्यतयाअशांत हो जाएगा उसकी अशांति उसे परमात्मा आनंद पास नही पहुँचा सकेगी अगर जूही का फूल गुलाब होना चांहे , तो जैंसी बेचैनी और परेशानी में पड़ जायेंगे वैसी बेचैनी और परेशानी में हम पड़ जाते है , जब हम किसी का अनुकरण करते है इसलिए मैं कहना चाहता हु कि अनुकरण नही आत्मखोज मैंने फली बात आप से कही श्रधा नही, जिज्ञासा दूसरी बात कहना चाहता हूँ अनुकरण नही आत्न्खोज कोई किसी के लिए आदर्स नही है प्रत्येक व्यक्ति का आदर्स उसके अपने भीतर छिपा है ,जो उघाड़ना है , और उसे हम नही उघडते और किसी पीछे जाते है तो हम भूल में पड़ जायेंगे ,हम भटकन में पड़ जायेंगे और में आप से कंहू की आप लाख उपाय करे , आप कभी कृष्ण ,बुद्ध नही बन सकोगे -
Wednesday, May 6, 2009
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